24 जुलाई को रामेश्वर नीखरा जी की यादों के झरोखे से लिखी गयी किताब देह दुर्ग में तरल आत्मा के विमोचन समारोह में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ।
इस किताब को दो नज़रिए से देखा जाना चाहिए। लेखक राजेंद्र चंद्रकांत राय के मुताबिक़ इसके ज़रिए एक राजनीतिक व्यक्ति के पचास साल के जीवन अनुभवों में तत्कालीन समाज, उसके चरित्र और उस दौर की राजनीतिक व्यवस्था का पर्दा खुलता है। लेकिन अधिकांश लोगों ने इसे नीखरा जी के जीवन संघर्ष की तरह ही पढ़ा और देखा। ठीक वैसे ही जैसे राजनीति में परसेप्शन्स ही किरदार का असली परिचय बना दिया जाता है।
लेकिन मैं समझती हूँ कि किसी के जीवन पर लिखी किताब का एक तीसरा पहलू भी होता है.. और वह है मनुष्य का मनुष्यत्व की प्राप्ति.. हम सभी जीवन जीते हैं, मगर कुछ लोग उसे सार्थक बनाते हुए जीते हैं। हमारा दर्शन कहता है कि सार्थकता उसी जीवन की है जो दूसरों के काम आए और अनुकरणीय बने। सो इस किताब में नीखरा जी का व्यक्तित्व इसी सामूहिक चेतना के साथ अनुकरणीय बनता चलता है।
यह एक बहते हुए शब्दों की धारदार किताब है। पढ़ना रुचिकर होगा।
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